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ना शिकायत है कोई , ना ही है , कोई अब गिला ,
ये तो क़िस्मत थी , हमारी जिसे , चाहा ना मिला !

चाँदनी रात भर , शोलों सी , जलाती थी बदन ,
भूला हूँ ख़्वाब जो , उस रात , हमारा ना खिला !

धूप से दिल की , सूखा था इक , ओस का फूल ,
याद पंखुड़ियाँ , किताबों में , मुझको ना दिला !

अब हुआ जाके यक़ीं , आईने को , नीयत पे मेरी ,
अक्स जब उसको , आँखों में , तुम्हारा ना मिला !

साँसों से तेरी , पिघल जाते थे , लब मेरे अक्सर ,
वो वक़्त याद आये , साक़ी मुझे , इतना ना पिला !

रवि ; दिल्ली : २२ मई २०१४