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आज भी याद है
मुझे वो दिन
जब हम और तुम
मिला करते थे
खूबसूरत वादियों में !
चमक होती थी
तुम्हारी आँखों में
और होठों पर
एक मुस्कराहट !
लेकिन अचानक
मैं
बेरोज़गार हो गया |
तुम
मिलती हो मुझसे
आज भी
मगर औपचारिकता वश
तुम्हारी आँखों में
ना वो चमक होती है
और ना ही
होठों पर वो मुस्कराहट !
कितना
फ़ासला कर दिया है
तुम्हारे और मेरे बीच
मेरी
कुछ दिनों की
इस बेरोज़गारी ने !!

रवि ; लखनऊ : सितम्बर 1978