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मेरे दिल की , मुझे धड़कन , इतना क्यूँ सताती है ,
जिसे मैं , भूलना चाहूँ , क्यूँ अक्सर याद आती है !

जो मुझसे ना , कहा तूने , मेरे इज़हार के बदले ,
मुझे तू , मेरे ख़्वाबों में , क्यूँ अब वो सुनाती है !

गुज़रा वो , हरेक लम्हा , ठहरा है ख़यालों में ,
तेरी ख़ुशबू , हरेक पल में , क्यूँ उनको बुलाती है !

मेरे दिल ने , सताया था , तेरे दिल को कभी शायद ,
धड़कन बन , उसी दिल में , क्यूँ अब तू समाती है !

जिसे तूने , छिपाया था , बरसों से इन आँखों में ,
सूखा वो , एक आँसू अब , क्यूँ पलकों से गिराती है !

रवि ; दिल्ली : २३ फ़रवरी २०१४