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उस युग का अब अवसान हुआ
नव चेतन का निर्माण हुआ
वो अवसर था
पर दुष्कर था
कभी सरल पथ
कभी दुर्गम रथ
जीवन मरण का प्रश्न कभी
कभी जीवन प्रसंग का ज्ञान हुआ !

उस युग का अब अवसान हुआ !

था क्षणिक उषा का क्षण
बहुत सरस था प्रात: कण
फिर सूर्य चढ़ा
और ताप बढ़़ा
हुई ओझल वो ओस बिन्दु
वाष्प बना आसक्ति सिन्धु
जीवन यथार्थ के दर्पण में
क्षण भंगुरता का परिमाण हुआ !

उस युग का अब अवसान हुआ
नव चेतन का निर्माण हुआ !

फिर पवन चली और स्वप्न बढ़ा
महत्वकांक्षी मैं लिये पंख उड़ा
नीचे सिधुं और ऊपर नभ
नहीं बचा मैं बिन्दु भी अब
रहस्य खुला ब्रह्मांड विस्तार
हुआ प्राप्त अहम निस्तार
स्वस्तित्व सत्यहीन दिखा
और चूर्ण मेरा अभिमान हुआ !

उस युग का अब अवसान हुआ !!

रात्रि पहर हुआ तम ताण्डव
कौरव सर्वत्र दिखें नहीं पांडव
किंकर्तव्यविमूढ़ क्या मैं करूँ
बनूँ अर्जुन या अभिमन्यु मरूँ
कृष्ण कभी तो मैं कर्ण बना
युद्ध स्वयं से प्रतिबार चुना
हुआ हृदय क्षत विक्षत जब
जीवन अस्तित्व शमशान हुआ !

उस युग का अब अवसान हुआ !!