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जब भी , दिल की ज़ुबान , सुनते हैं ,
ख़्वाब फिर , कुछ नये से , बुनते हैं !

रात भर , देख देख , तारों को ,
तभ भी , लाखों में एक , चुनते हैं !

टूटा ग़र , तारा , आसमां से कभी ,
अपनी आँखों के , तारे , गिनते हैं !

ग़र चुभें , आँखों में , टूटे तारे कभी ,
पलकों से , आँसुओं को , बिनते हैं !

ग़र हुई , तार तार , रूह भी कभी ,
रूई हसरत की , फिर से , धुनते हैं !

रवि ; दुबई : २४ दिसम्बर २०१३